गुजरात युवा कांग्रेस प्रवक्ता आशीष कोटड़ीया ने केंद्र सरकार की NMP नीति को लेकर साधा निशाना

देश के समावेशी विकास हेतु अवसंरचनात्मक क्षेत्र का विकास होना अनिवार्य व आवश्यक है, इसी उद्देश्य को केंद्र में रखकर केंद्र सरकार ने 23 अगस्त 2021 को राष्ट्रीय मोद्रीकरण पाइपलाइन (NMP) नीति को घोषित किया, जिसके अंतर्गत सरकार ने देश की सार्वजनिक संपत्तियों का मोद्रिकरण करके अगले चार वर्षो में कुल छह (6) लाख करोड़, अर्थात प्रति वर्ष 1.50 लाख करोड़ रुपए के राजस्व प्राप्ति का लक्ष्य निर्धारित किया है। किन्तु विडंबना यह है कि केंद्र सरकार ने सार्वजानिक संपतियो/ इकाइयों के मौद्रिकरण में विपक्ष, सिविल समाज, सरकार व निजी संगठनों इत्यादि की सहमति व उनको विश्वास में नहीं लिया है।

देश की सार्वजनिक इकाइयों व संपत्तियों का इस प्रकार मौद्रिकरण करना देश की अर्थवयवस्था और विशेष तौर पर असंगठित क्षेत्र के हितार्थ में नहीं है।

सरकार ने दिसंबर 2019 में राष्ट्रीय अवसंरचनात्मक पाइपलाइन (NIP) प्रोग्राम घोषित किया था जिसका प्रमुख उदेश्य अगले पांच वर्षों में (2020-2025) अवसंरचात्मक क्षेत्र में कुल 111 लाख करोड़ का निवेश करना है, अर्थात कि प्रति वर्ष 21 लाख करोड़ रूपए के निवेश को आधिकारिक संरचना क्षेत्र में किया जाएगा। इसी उद्देश्य की प्राप्ति हेतु केंद्र सरकार ने इस वर्ष के वित्तीय बजट (2021-22) में NMP की घोषणा की, जो NIP कार्यक्रम अंतर्गत के अंतर्गत 15-18 प्रतितशत राजस्व की आपूर्ति करेगा।

सूची में सम्मिलित संपत्ति

केंद्र सरकार के इस विशाल विक्रय कार्यक्रम में विशेष तौर पर तीन सार्वजानिक संपत्तियों को ज्यादा प्राथमिकता दी है जिसमें सड़क (27%), रेलवे (25%) और विद्युत हस्तांतरण (8%) शामिल है।

देश के प्रधनमंत्री जी और वित्त मंत्री जी देश की सार्वजनिक संपत्ति के अनुपात को शून्य करने के उपलक्ष्य में कार्य कर रहे है, और सरकार इस NMP प्रोजेक्ट के माध्यम से आगामी चार वर्ष में छह लाख करोड़ का राजस्व प्राप्त करेगी, और प्रतिवर्ष 1.50 लाख करोड़ रूप से लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

उद्देश्य और मानदंडों की अनुपस्थिति

देश में निजीकरण व विनिवेश की नीति की शुरुआत वर्ष 1991 से भीमकाय आर्थिक सुधार के साथ हुई थी जिनका प्रमुख उद्देश्य राजस्व प्राप्त करना था और अन्य वैकल्पिक लक्ष्य के तौर पर पूंजी निवेश को बढ़ाना, बाज़ार के दायरे को वृहद करना, आधुनिक तकनीकों के शामिल करना इत्यादि था। किन्तु इन सभी उदेश्यो की प्राप्ति वैधानिक मानदंडों को केंद्र में रखकर की गई थी जबकि वर्तमान सरकार के इस तथाकथित NMP प्रोग्राम इन मापदंडों को दरकिनार किया गया है।

देश की सार्वजानिक संपत्तियों के विनिवेश या निजीकरण को लेकर कई मापदंड है जिनको केंद्र में रखना अति आवश्यक है, जैसे कि,

  1. रणनीतिक क्षेत्र में सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण नहीं किया जाएगा – जैसे, परमाणु ऊर्जा, रक्षा उत्पादन, रेलवे, रणनीतिक बंदरगाह।
  2. लगातार घाटे में चल रही इकाइयों का निजीकरण किया जा सकता है।
  3. एक पीएसयू का निजीकरण किया जाएगा यदि यह प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देगा; यदि यह एकाधिकार की ओर ले जाता है तो इसका निजीकरण नहीं किया जाएगा। केंद्र सरकार ने उपर्युक्त सभी मानदंडों को दरकिनार कर NMP प्रोग्राम को आत्मसात किया है। उदाहरणतः पूर्व में रेलवे क्षेत्र रणनीतिक संपत्ति की सूची में शामिल था किन्तु केंद्र सरकार ने अपनी इस क्षुद्र व जीर्ण नीति हेतु रेलवे क्षेत्र को गैर रणनीतिक क्षेत्र की सूची में शामिल कर दिया जिसका देश में यात्रियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। एकाधिकार वाद का खतरा वास्तविक चिंता यह है कि एनएमपी बंदरगाहों, हवाई अड्डों, सौर ऊर्जा, दूरसंचार, प्राकृतिक गैस पाइपलाइन, पेट्रोलियम पाइपलाइन और वेयरहाउसिंग जैसे प्रमुख क्षेत्रों में एकाधिकार को बढ़ावा मिलेगा। भारत अपेक्षाकृत उद्योग और सेवाओं में निजी क्षेत्र के नेतृत्व वाली अर्थव्यवस्था के लिए एक नवागंतुक है। ऐसी अर्थव्यवस्थाएं अनिवार्य रूप से उस बिंदु पर पहुंच जाएंगी जब एकाधिकार उभरेगा। इस संबंध में अमेरिका हमें कई सबक सिखा सकता है। वर्तमान में, अमेरिकी कांग्रेस और सरकार ने Google, Facebook और Amazon के एकाधिकार और अनुचित व्यापार प्रथाओं को रोकने के लिए कानूनों और अन्य उपायों पर विचार कर रही है। इसके अतिरिक्त एनएमपी के तहत लाए गए पीएसयू की पसंद में मानदंडों की स्पष्ट अनुपस्थिति के अलावा, यह स्पष्ट नहीं है कि उद्देश्य क्या हैं। प्रति वर्ष 1,50,000 करोड़ रुपये का “किराया” इकट्ठा करने के उद्देश्य पर विचार अवश्य करे क्योंकि NMP प्रोग्राम के अंतर्गत जो खुलासा नहीं किया गया है वह है, वर्तमान में चुनी गई संपत्तियों के द्वारा प्राप्त वार्षिक राजस्व। सरकार को प्राप्त होनेवाले राजस्व ‘लाभ’ या ‘हानि’ में केवल 1,50,000 करोड़ रुपये और वर्तमान वार्षिक राजस्व के बीच का अंतर होगा। सबसे बड़ी गिरावट सेवाओं की कीमतों में आएगी। एक बार मुद्रीकरण के बाद, पीएसयू बाजार में मूल्य-स्थिरीकरणकर्ता नहीं रहेगा और यदि इस क्षेत्र में एक या दो या तीन निजी कंपनियां हैं, तो मूल्य निर्धारण और कार्टेलाइजेशन होना तय है। सीमेंट के तथाकथित प्रतिस्पर्धी बाजार में भी हमने इसे सच पाया है। बैंकिंग उद्योग में यह सच पाकर यूनाइटेड किंगडम हिल गया था। प्रदेश प्रवक्ता ने आशंका जताई है कि कई क्षेत्रों में कीमतें बढ़ेंगी। अंततोगत्वा यह स्पष्ट है कि NMP प्रोग्राम के माध्यम से केंद्र सरकार देश की सार्वजानिक संपत्तियों का विक्रय कर रही है जिसका देश की अर्थव्यवस्था, सेवा क्षेत्र, उपभोक्ता मूल्य तथा सरकारी व निजी पूंजी खर्च पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। भारत जैसी मिश्रित अर्थव्यवस्था वाले देश के लिए इस प्रकार का कदम देश की आर्थिक प्रगति में बाधा व अवरोध उत्पन्न करेगा।

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