ब्लैक फंगस के मरीजों की सर्जरी के बाद मैक्सिलोफेशियल प्रोस्थेसिस हो सकती है काफी कारगर सिद्ध: डॉ मनीष गौतम (मैक्सिलोफेशियल प्रोस्थोडोंटिस्ट)
अब तक मैक्सिलोफेशियल प्रोस्थेसिस कैंसर और चोट के केस में ही उपयोग होता आया है पर कोरोना के बाद आई ब्लैक फंगस महामारी जिससे पीड़ित मरीज के आंख और नाक हटाने तक की नौबत आ जा रही है ऐसे में यह मैक्सिलोफेशियल प्रोस्थेसिस काफी सहायक सिद्ध हो सकती है।
अक्सर देखा गया है की किन्ही कारणों से जब मरीज की आंख, नाक या जबड़े हटाए जाते हैं तो मरीजों की जान तो बची रहती है पर उनके चेहरे से अंग हट जाने पर हीन भावना उत्पन्न हो जाती है। पीड़ित में आत्मविश्वास की कमी भी देखी गई है पर इस विधि से उन्हे नया कृत्रिम अंग बनाकर लगा दिया जाता है जो देखने में बिल्कुल सजीव जैसा ही होता है और सजीव अंग की तरह उनमें मूवमेंट भी हो सकता है।
इस बारे में हमने जानने की कोशिश की है रांची के वरीय दंत चिकित्सक डॉ मनीष गौतम से, जो फिलहाल रिम्स के दंत विभाग में कार्यरत हैं और मैक्सिलोफेशियल प्रोस्थोडोंटिक्स में स्पेशलिस्ट हैं और इनके दर्जनों लेख दंत चिकित्सा और मैक्सिलोफेशियल प्रोस्थेसिस के बारे में छप चुके हैं।
डॉ गौतम बताते है कि ओरल का मतलब होता है- मुंह, दांत, जबड़ा और मसूड़े , वहीं मैक्सिलोफेशियल का संबंध मुंह के बाहर और चेहरे से होता है।
ओरल मैक्सिलोफेशियल सर्जरी के अंतर्गत इन सभी अंगों से जुड़ी विकृति और समस्या का पता लगाना और उनका सर्जरी द्वारा ट्रीटमेंट करना शामिल होता है।
वहीं मैक्सिलोफेशियल प्रोस्थेटिक्स के जरिए अंग संरचना और उसके कार्यों को पुनः बहाल किया जा सकता है। इसके मदद से रोगी अपना आत्म-विश्वास प्राप्त कर जीवन शैली में सुधार ला सकते हैं।
उन्होंने बताया कि मैक्सिलोफेशियल प्रोस्थेसिस के बारे में अभी जागरूकता बहुत कम है कई मेडिकल डॉक्टर भी नहीं जानते कि डेंटल में इसके लिए अलग से स्पेशलाइजेशन भी होता है। वहीं आम लोग भी जानकारी के अभाव में अपने खराब अंगो को ठीक नही करवा पाते है। उन्होंने कहा कि ब्लैक फंगस के मरीज़ के सर्जरी से पूरी तरह से स्वस्थ होने के बाद उनमें यह प्रोस्थेसिस लगाया जा सकता है इसके लिए वह अपना पूरा योगदान देने के लिए तत्पर रहेंगे।