दो महान् सन्तों श्री श्री परमहंस योगानन्द और स्वामी श्री युक्तेश्वरजी के महासमाधि दिवस पर विशेष

सहस्राब्दियों से भारतवर्ष की पवित्र भूमि को अनेक महान् दिव्य आत्माओं के चरणों के स्पर्श से पावन होने का सुअवसर प्राप्त होता रहा है। स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरि, जिनका महासमाधि दिवस 9 मार्च को है और श्री श्री परमहंस योगानन्द, जिनका महासमाधि दिवस 7 मार्च को है, की गिनती व्यापक रूप से ऐसे ही दो महान् सन्तों के रूप में की जाती है। उनके प्रेरक जीवन ने असंख्य भक्तों की सामूहिक चेतना को प्रेम एवं ज्ञान से व्याप्त किया है, जिसके परिणामस्वरूप अनेक लोगों ने ईश्वर के साथ एकत्व के अंतिम लक्ष्य की ओर अपने विकास की गति को तीव्र करने की क्षमता प्राप्त की है।
सर्वप्रथम योगानन्दजी की स्वामी श्रीयुक्तेश्वरजी से वाराणसी में भेंट हुई थी। यद्यपि यह संयोगवश प्रतीत होता है किन्तु यह स्पष्ट रूप से एक दिव्य योजना के अनुसार ही हुआ था। उस समय वे मुकुन्दलाल घोष नाम के एक युवक थे, किन्तु वे पहले से ही अत्यन्त गम्भीरतापूर्वक एक ऐसे सच्चे गुरु की खोज कर रहे थे, जो उसके जीवन में आकर उन्हें अपना प्रेमपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान कर सके। वाराणसी में श्रीयुक्तेश्वरजी के पैतृक निवास की छत पर एक सुखद संध्या की वह प्रथम भेंट तात्क्षणिक रूप से आनन्ददायक किन्तु अनिर्णायक सिद्ध हुई। योगानन्दजी ने अपने अत्यन्त लोकप्रिय गौरव ग्रन्थ “योगी कथामृत” में उस भेंट का तथा आने वाले वर्षों में अपने गुरु के साथ घनिष्ठता का वर्णन किया है।
परन्तु आने वाले वर्षों में कोलकाता के निकट श्रीरामपुर में स्थित स्वामी श्रीयुक्तेश्वरजी के आश्रम में, महान् गुरु के कठोर अनुशासन के साथ-साथ स्वाभाविक प्रेमपूर्ण हृदय ने अनुभवहीन संन्यासी को विश्व प्रसिद्ध गुरु के रूप में ढाला और परिष्कृत किया जो कालान्तर में योगानन्दजी के नाम से विख्यात हुए। अपने गुरु के मार्गदर्शन के उन प्रारम्भिक वर्षों ने योगानन्दजी के व्यक्तित्व और अन्तरतम् गुणों को इस सीमा तक रूपान्तरित कर दिया कि वे विश्व स्तर पर क्रियायोग विज्ञान के प्रमुख प्रतिपादक बने और उन्होंने आगामी युगों के लिए एक अनुपम आध्यात्मिक विरासत का निर्माण किया।
योगानन्दजी ने अपने दूरदर्शी गुरु द्वारा सौंपे गए उत्तरदायित्व को अत्यंत गौरवमय ढंग से पूर्ण किया। उनके गुरु स्वामी श्रीयुक्तेश्वरजी को उनके गुरु श्री लाहिड़ी महाशय और अद्वितीय महावतार बाबाजी ने मार्गदर्शन प्रदान किया था ताकि वे युवा संन्यासी को महासागरों की यात्रा करने और पाश्चात्य जगत् में क्रियायोग मार्ग के ज्ञान का प्रसार करने के लिए एक प्रकाशस्तम्भ बनने के लिए तैयार कर सकें। योगानन्दजी द्वारा संस्थापित आध्यात्मिक संगठन, सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप (एसआरएफ़) अनेक दशकों से सम्पूर्ण विश्व के उत्सुक सत्यान्वेषियों के मध्य क्रियायोग शिक्षाओं का प्रसार कार्य अत्यन्त सक्षमता के साथ पूर्ण कर रहा है। भारत के भक्तों के लिए योगानन्दजी द्वारा प्रदत्त ध्यान की वैज्ञानिक प्रविधियों के अभ्यास हेतु चरणबद्ध निर्देश योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया (वाईएसएस) की गृह-अध्ययन पाठमाला और मोबाइल ऐप के माध्यम से उपलब्ध हैं।
गुरु और शिष्य का आदर्श सम्बन्ध स्वामी श्रीयुक्तेश्वरजी और योगानन्दजी के रूप में अत्यन्त सुन्दर ढंग से अभिव्यक्त हुआ। ये दोनों महान् सन्त भविष्य में आने वाले अपने असंख्य अनुयायियों को शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से मानवीय लीला कर रहे थे। दोनों को सामान्य मनुष्यों की भाँति अनेक प्रकार के कष्ट सहन करने पड़े। तथापि, अपने आस-पास के लोगों को आशीर्वाद प्रदान करने के लिए उन्होंने जिस प्रत्येक शब्द, प्रत्येक दृष्टि और प्रत्येक स्पर्श का चयन किया, वह उनके मार्ग का अनुसरण करने वाले सच्चे भक्तों के लिए शाश्वत महत्व रखता है।
स्वामी श्रीयुक्तेश्वरजी के ये वचन वस्तुतः अविस्मरणीय हैं कि, “यदि आप वर्तमान में आध्यात्मिक प्रयास कर रहे हैं, तो भविष्य में सब कुछ सुधर जाएगा!” और योगानन्दजी ने, अपने महान् गुरु के एक सच्चे शिष्य के रूप में, अपने गुरु के प्रत्येक वचन को आत्मसात् करने और कार्यान्वित करने के लिए महान् प्रयास किए।
अपने अनुकरणीय जीवन के शक्तिशाली आध्यात्मिक प्रभाव से, और इस पृथ्वी पर अपने पावन प्रवास की आभा से, स्वामी श्रीयुक्तेश्वरजी और योगानन्दजी ने अपने लाखों अनुयायियों के हृदयों में सहज रूप से स्थान प्राप्त किया है। और योगानन्दजी ने अत्यन्त उपयुक्त एवं प्रेरणादायक ढंग से घोषणा की है, “ईश्वर ने इस संन्यासी को एक विशाल परिवार प्रदान किया है!” अधिक जानकारी : yssofindia.org

लेखक – विवेक आत्रेय

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

आप पसंद करेंगे