क्रियायोग प्रविधि के सूक्ष्म प्रसार के अग्रदूत, महान क्रियायोगी लाहिड़ी महाशय का आविर्भाव दिवस कल 30 सितंबर को

लाहिड़ी महाशय अब तक अवतरित महानतम गुरुओं में से एक थे। उनका पूरा नाम श्री श्यामाचरण लाहिड़ी था। वे बनारस के निवासी थे। उन्होंने एक ऐसे संतुलित जीवन का आदर्श स्थापित किया जिसके माध्यम से उच्चतम महान् अवस्थाओं की प्राप्ति सम्भव है। अधिकांश व्यक्तियों की भाँति लाहिड़ी महाशय भी एक गृहस्थ थे, परन्तु दैनिक जीवन की नीरसता में भी वे ईश-साक्षात्कार प्राप्त करने के लिए अपनी चेतना का उत्थान करने में सक्षम थे।

लाहिड़ी महाशय अद्वितीय अमर सन्त, महावतार बाबाजी के मुख्य शिष्य थे और वे स्वयं स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरि के गुरु थे, जो योगी कथामृत पुस्तक के लेखक श्री श्री परमहंस योगानन्द के गुरु थे।

इस उत्कृष्ट पुस्तक, योगी कथामृत, में लाहिड़ी महाशय के जीवन की घटनाओं का विस्तृत वर्णन है। इनमें से एक घटना आज भी पाठकों के मन को आश्चर्यचकित कर देती है और जो अब एक इतिहास बन गई है। वह घटना थी, “भूल से भेजा गया” तार जिसके कारण लाहिड़ी महाशय का स्थानांतरण रानीखेत में हो गया था और वहाँ हिमालय की पहाड़ियों में उनका निरुद्देश्य विचरण जिसके कारण अत्यंत विस्मयकारी ढंग से उनकी भेंट बाबाजी के साथ हुई थी। जिन लोगों को योगी कथामृत पुस्तक पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, उन सबके लिए बाबाजी के साथ हुए उनके वार्तालाप अत्यंत प्रेरणादायक हैं।

लाहिड़ी महाशय ने अपने जीवन के माध्यम से ईश्वर-साक्षात्कार की प्राप्ति हेतु संतुलन एवं एकाग्रता जैसे सद्गुणों के मार्ग का आदर्श स्थापित किया। उन्होंने अपने आश्चर्यजनक ढंग से प्रभावशाली और चमत्कारी कार्यों से लाखों लोगों को प्रेरित किया और इन कार्यों ने नेत्रहीन भक्त रामू और एक निस्संतान महिला अभया जैसे सामान्य अनुयायियों के जीवन का उत्थान किया। एक अंग्रेज़ सज्जन जो उनके ऑफ़िस सुपरिंटेंडेंट थे, वे भी उनके आध्यात्मिक कौशल से लाभान्वित हुए थे, जब उनकी पत्नी को अत्यंत चमत्कारी ढंग से स्वास्थ्य लाभ हुआ था, यद्यपि उस समय वे हज़ारों मील दूर थीं।
तथापि, महावतार बाबाजी के आशीर्वादों के माध्यम से विलुप्त क्रियायोग विज्ञान का पुनरुत्थान करना ही महान् सन्त के जीवन का सर्वाधिक प्रभावशाली और अग्रणी योगदान था। लाहिड़ी महाशय ने आधुनिक युग के सत्यान्वेषियों के मध्य सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्रियायोग प्रविधि के सूक्ष्म प्रसार के अग्रदूत एवं मुख्य नायक की भूमिका निभाई।

योगानन्दजी, जिन्होंने योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया और सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप की स्थापना की, अपने परमगुरु लाहिड़ी महाशय से बहुत प्रेरित हुए । जब वे अपनी माँ की गोद में एक नन्हें शिशु थे, तभी उन्हें महान् गुरु का आशीर्वाद प्राप्त हुआ, जब उन्होंने ये अविस्मरणीय शब्द कहे थे, “छोटी माँ! तुम्हारा पुत्र एक योगी होगा। एक आध्यात्मिक इंजन बनकर वह अनेक आत्माओं को ईश्वर के साम्राज्य में ले जाएगा।”

योगानन्दजी की शिक्षाएँ मुख्यतः महान् धर्मशास्त्रों, श्रीमद्भगवद्गीता और बाइबिल के दर्शन पर केन्द्रित हैं, और उन्हें अत्यंत सुंदर ढंग से आदर्श जीवन पाठमाला और अनेक अन्य प्रकाशनों के रूप में संग्रहित किया गया है। जनसाधारण के लिए उनके संदेश का सार है सम्पूर्ण मानव जाति के लिए अन्ततः ईश्वर के व्यक्तिगत प्रत्यक्ष अनुभव की प्राप्ति की आवश्यकता पर बल देना। लाहिड़ी महाशय ने बाबाजी से प्रार्थना की थी कि वे उन्हें सभी सच्चे साधकों को क्रियायोग का ज्ञान प्रदान करने की अनुमति प्रदान करें और इस प्रकार लाहिड़ी महाशय ने ही सामान्य जनमानस के हृदयों तक इन युगांतरकारी शिक्षाओं का मार्ग प्रशस्त किया।

लाहिड़ी महाशय का आविर्भाव दिवस 30 सितम्बर और उनका महासमाधि दिवस 26 सितम्बर है।

यह तथ्य कि आज इस आधुनिक युग में लाखों लोग क्रियायोग मार्ग का अनुसरण कर रहे हैं, भारत के महान् अवतार, लाहिड़ी महाशय, के जीवन का साक्ष्य है, जिनका जीवन अत्यंत सादगीपूर्ण ढंग से घुरणी के एक छोटे से स्थान से प्रारम्भ हुआ था, परन्तु कालांतर में उनकी गिनती इस पृथ्वी पर अवतरित महानतम सन्तों में की जाने लगी।

अधिक जानकारी : yssi.org

लेखक : विवेक अत्रे

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