डीएमएफटी फंड का कैसे हो रहा बंदरबांट….जानिए सच्चाई…

क्या आप यह कल्पना कर सकते हैं कि रांची नगर निगम के टैक्स कलेक्शन के पैसे से जिले के सुदूरवर्ती प्रखंड खलारी में विकास की योजनाएं चल रही हों!! क्या यह बात कहीं सुनने को मिली कि मध्यप्रदेश के टैक्स के पैसे से झारखंड में विकास योजनाए संचालित हो रही हों!! या फिर क्या इस बात की कल्पना की जा सकती है भारत के टैक्स कलेक्शन के पैसे से बांग्लादेश, श्रीलंका में विकास योजनाए चल रही हों!! नहीं ना!! फिर खनन क्षेत्र के टैक्स कलेक्शन के पैसे से गैर खनन क्षेत्रों में विकास योजनाएं कैसे चल सकती हैं!! वह भी बगैर वहां के लोगों की सहमति के?

जी हां, यह हो रहा है और वह भी ठीक हमारे नाक के नीचे। वर्ष 2016 में खनन क्षेत्रों के विकास के लिए, यहां के लोगों के जीवन में आमूल चूल परिवर्तन लाने के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने डीएमएफटी निधि (डिस्ट्रिक्ट मिनरल्स फाउंडेशन ट्रस्ट) की शुरुआत की थी। यह वह निधि होती है जो खनन कंपनिया खनन कार्य से होने वाले लाभ का कुछ हिस्सा रॉयल्टी के मद में राज्य सरकार के खनन विभाग को देती हैं। जब यह योजना शुरू हुई तो खनन क्षेत्र के लोगों के भी चेहरे खिल उठे थे कि अब उनके क्षेत्र का भी विकास होगा, क्षेत्र में स्वास्थ्य, शिक्षा, आधारभूत संरचनाओं, पेयजल इत्यादि की सुविधाएं बढ़ेंगी। लेकिन क्या यह हो पाया?
आज डीएमएफटी निधि का मोनिटरिंग बॉडी जिले के उपायुक्त एवं उप विकास आयुक्त को बना दिया गया। जिन योजनाओं का चयन संबंधित खनन क्षेत्रों की ग्राम सभाओं में होना था, वह योजनाएं जिले में बन रही हैं और मुखिया, पंचायत सचिव तथा प्रखंड विकास पदाधिकारियों को मोहरा बनाकर उन पर हस्ताक्षर करा लिया जा रहा है। जिन कार्यों के लिए अलग से विभाग बने हुए हैं, जैसे पुलिस हाउसिंग डिपार्टमेंट, भवन निर्माण विभाग इत्यादि उनके कार्यों के लिए भी उक्त राशि का इस्तेमाल हो रहा है। राजनीतिक दबाव में योजनाएं जिले के दूसरे प्रखंडों के लिए बन रही हैं और उक्त निधि की राशि का बंदरबांट सत्ता के गलियारों में बैठे राजनीतिक आकाओं, प्रशासनिक हुक्मरानों एवं कुछ जन प्रतिनिधियों एवं ठीकेदारों के बीच हो रहा है।

खनन क्षेत्रों का आम आदमी जो खनन कार्यों से उत्पन्न हुए प्रदूषण और उससे जनित बीमारियों यथा अस्थमा, ब्लड प्रेशर, शुगर इत्यादि के बीच जीने को अभिशप्त था वह आज भी उन्ही बीमारियों के बीच जीने को मजबूर है और इन हुक्मरानों की कार्यशैली से खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है।

स्तंभकार: आनंद सिंह, खलारी

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