सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी पर झामुमो के केंद्रीय प्रवक्ता कुणाल षाड़ंगी ने केंद्र सरकार को घेरा

प्रसिद्ध एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक द्वारा 10-09-2025 को छठी अनुसूची और लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर भूख हड़ताल शुरू की गई थी।

बताया जाता है कि 24 सितंबर को लगभग 11.30 बजे उनके भड़काऊ भाषणों से उकसाई गई भीड़ भूख हड़ताल स्थल से निकली और एक राजनीतिक दल के कार्यालय के साथ-साथ लेह के CEC के सरकारी कार्यालय पर हमला किया। उन्होंने इन कार्यालयों में आग लगा दी, सुरक्षाकर्मियों पर हमला किया और पुलिस वाहन को आग लगा दी। बेकाबू भीड़ ने पुलिसकर्मियों पर हमला किया जिसमें 30 से अधिक पुलिस/सीआरपीएफ कर्मी घायल हो गए। भीड़ ने सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करना और पुलिसकर्मियों पर हमला करना जारी रखा। आत्मरक्षा में, पुलिस को गोलीबारी करनी पड़ी जिसमें दुर्भाग्य से कुछ लोगों के हताहत होने की खबर है।
इस हिंसक घटनाओं के बाद सोनम को पुलिस ने 26 सितम्बर को गिरफ्तार कर जोधपुर जेल शिफ्ट किया गया है।
वही सोनम के NGO की भी मान्यता को रद्द कर दिया गया है और इस प्रकरण के बाद से सरकार और सोनम वांगचुक के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी चल रहा है। सरकार का कहना है कि सोनम वांगचुक के उकसावे वाले बयानों के कारण हिंसा भड़की, जबकि वांगचुक ने इन आरोपों से इनकार किया है।

पर अलग-अलग लोगों के अलग-अलग मत हैं। यह कहना कि यह पूरी तरह से सही है या पूरी तरह से गलत है, मुश्किल है क्योंकि इसमें कई पहलू शामिल हैं:

​1. सरकार और प्रशासन का दृष्टिकोण (Arrest by Authorities)

​सरकार और पुलिस ने सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी के लिए निम्नलिखित कारण बताए हैं:

  • हिंसा भड़काने का आरोप: प्रशासन ने उन पर 24 सितंबर को हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों (जिसमें 4 लोगों की मौत हुई और 80 से ज़्यादा लोग घायल हुए) के दौरान युवाओं को उकसाने और भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगाया है। उनका मानना है कि वांगचुक के बयानों ने शांति भंग की।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA): उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत गिरफ्तार किया गया है, जो एक गंभीर कदम है और यह संकेत देता है कि सरकार उन्हें कानून और व्यवस्था के लिए एक बड़ा खतरा मानती है।
  • वित्तीय अनियमितता: उनकी गिरफ्तारी से एक दिन पहले, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उनके NGO SECMOL का विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (FCRA) लाइसेंस रद्द कर दिया था, जिसमें वित्तीय अनियमितताओं और नियमों के उल्लंघन का हवाला दिया गया था।

इस दृष्टिकोण से, उनकी गिरफ्तारी को हिंसा पर नियंत्रण पाने और कानून का शासन बनाए रखने के लिए “आवश्यक” कदम माना जा सकता है।

​2. प्रदर्शनकारियों और समर्थकों का दृष्टिकोण (View of Supporters)

​सोनम वांगचुक के समर्थकों, LAB (लेह एपेक्स बॉडी) और KDA (कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस) ने उनकी गिरफ्तारी की कड़ी आलोचना की है:

  • शांतिपूर्ण विरोध: समर्थकों का कहना है कि वांगचुक पिछले कई वर्षों से लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने और पूर्ण राज्य का दर्जा देने के लिए शांतिपूर्ण ढंग से (भूख हड़ताल और पदयात्रा द्वारा) आंदोलन कर रहे थे।
  • बलि का बकरा: उनके समर्थकों का आरोप है कि सरकार उन्हें बलि का बकरा (scapegoat) बना रही है और हिंसा की ज़िम्मेदारी उन पर डालकर, लद्दाख के लोगों की मुख्य संवैधानिक मांगों से ध्यान भटका रही है।
  • लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन: आलोचकों का कहना है कि एक सामाजिक कार्यकर्ता को उनकी मांगों के लिए आवाज उठाने पर जेल भेजना लोकतंत्र में असहमति (dissent) के अधिकार का दमन है।

इस दृष्टिकोण से, उनकी गिरफ्तारी को “गलत” और “अलोकतांत्रिक” माना जाता है, जो सरकार की ओर से लोगों को डराने और आंदोलन को कुचलने का प्रयास है।

सोनम की गिरफ्तारी पर झामुमो के केंद्रीय प्रवक्ता एवं पूर्व विधायक कुणाल षाड़ंगी ने केंद्र सरकार को घेरते हुए सोशल मीडया में राम रहीम और सोनम वांगचुक दोनों की फोटो पोस्ट किया है और लिखा है कि बलात्कारियों को बेल मिल रही और देश के गौरव को मिल रही जेल, यही है विश्वगुरु का नया भारत

उधर कई पत्रकार और बुद्धिजीवी गिरफ्तारी को सही बता रहे, उनका मानना है कि हिंसक आंदोलन सही नही है और लोगो को भड़काना, वित्तीय अनियमितता करना, देश के लिए नही सोचना आदि सोनम की ऐसी गतिविधियों है जो उन्हें कटघरे में खड़ा करती है।

इस मुद्दे पर आपकी क्या राय है, आप हमें कमेंट कर जरूर बताएं।

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